इस्लाम मज़हब दुनिया का कह सकते हैं कि ऐसा पहला मज़हब है जिसने सबसे पहले लोगों को बराबरी का अधिकार दिया. इस मज़हब ने दुनिया को इंसानियत का पैगाम दिया और गलत और सही के बीच लोगों का फर्क करना सिखाया. यूँ कहा जा सकता है कि इस्लाम के आने से पहले गुनाह क्या होता है, इस बात का इल्म नहीं था लोगों के बीच, इस्लाम के आने लोगों के मुसलमान बन जाने के बाद ही यह दुनिया रहने लायक हुई.
इस्लाम में, इबादत के साथ साथ एखलाक को भी तरजीह दी गई है. एक हदीस में यह बात है कि किसी पर ज़ुल्म करने वाला, किसी का खू न करने वाला, या फिर किसी को मारने वाले की नेकियाँ उन मजलूमों को मिल जाएगी, जिसे उस शख्स ने परेशान किया होगा या तकलीफ़ दी होगी. और इसके बाद अगर गुनाह करने वाले की नेकियाँ ख़त्म हो जाएँगी तो उसे दोज़क में डाल दिया जायेगा. ऐसे में इस बात काख़याल हम सभी,
को रखना चाहिए कि हम खुदा की इबादत करने के साथ साथ इस बात का भी ख्याल रखें कि हमारी वजह से किसी दूसरे इंसान को परेशानी नहीं होनी चाहिए. नहीं तो उसका हिसाब खुदा के सामने होगा. यूँ तो इस दुनिया में हम उस शख्स को दबा देंगे लेकिन जब खुदा के सामने इसका फैसला होगा तब हम कहाँ जायेंगे. इसके अलावा बदकारी करना या तोहमत लगाना भी इस्लाम की नज़र में बहुत बड़ा गुनाह है. यूँ तो आज कल,
का माहौल ऐसे हो गया है, कि चुगली खोरी आम हो गई है. हर घर और हर परिवार में ऐसा हो रहा है. बड़ी बात यह है कि इस्लाम पर पाबन्दी चलने वालों में भी ऐसी फितरत पाई जाती है. ऐसे में हमें इबादत के साथ साथ इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए. ताकि हम कस गुनाह से बच सकें.
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